इतिहास के पन्नो मे दर्ज है अपना कैराना महाराजा कर्ण का कैराना से रिश्ता
इतिहास के पन्नो मे दर्ज है अपना कैराना
महाराजा कर्ण का कैराना से रिश्ता

लेखक:- पुनीत कुमार गोयल कैराना
जनपद मुजफ्फरनगर से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर बसा करीब 90 हजार की आबादी का कस्बा कैराना जो प्राचीन काल में कर्णपुरी के नाम से विख्यात था जो बाद में बदलकर किराना नाम से जाना गया और इसके पश्चात फिर कस्बे का नाम किराना से बदकर कैराना में परिवर्तित हुआ।

कैराना से दक्षिण दिशा की ओर लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर बसे गॉव तीतरवाड़ा में एक तीतर खाँ पठान रहते थे जिसके कृत्य से लोग काफी परेशान हो चुके थे। बताते हैं कि इस क्षेत्र में उस समय होने वाली शादी के बाद दुल्हे द्वारा यहाँ से गुजरने वाली दुल्हन की डोली उक्त तीतर खाँ एक रात अपने पास रखता था। इसी प्रकार उस समय जब तीतर खाँ ने अपनी आदत के अनुसार यहाँ से गुजरने वाली एक बारात को रोककर नव.वधु को जबरन दुल्हे से ले लिया तो दुल्हे पक्ष के लोग शहर पंजीठ में रहने वाले उस समय के अति प्रभावशाली व्यक्ति राणाहुर्रा जो कुछ वर्षों पूर्व ग्राम जूण्डला ;हरियाणाद्ध से आकर यहाँ बसा था के पास पहुँचे और तीतर खाँ के कृत्यो की जानकारी दी। आज जहाँ पर तीतरवाडा बसा है वह पंजीठ से मात्र 3 किलो मीटर की दूरी पर है तथा कैराना से 5 किलो मीटर दक्षिण में है। बताते हैं कि राणाहुर्रा ने फरियाद सुनकर तीतर खाँ से युद्ध करने की ठान ली और वह तीतर खाँ के पास तीतरवाडा पहुँचा और वधु को मुक्त करने का

आग्रह किया जिस पर तीतर खाँ ने नव वधु को वापिस करने से मना कर दिया इस पर राणा हुर्रा ने अपने 20 पुत्रों व अन्य साथियों सहित तीतर खाँ पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में तीतर खाँ को मौत के घाट उतार दिया गया और नव वधु को मुक्त करा लिया गया। इस युद्ध में राणा हुर्रा के 17 पुत्र शहीद हो गये। पुत्र कलसा दीपचन्द व दोपाल बचे इनमें से बाद में कलसा से कैराना क्षेत्र के गुजरों की चौरासी कलस्यान नाम से बसी जो आज भी कलस्यान खाप के नाम से जानी जाती है। दूसरे पुत्र दीपचन्द ने देवबंद के शासन पर राज किया जबकि तीसरे पुत्र दोबाल ने रामपुर

मनिहारान पर शासन किया और वहाँ पर खूबडो की चौरासी बसायी। बताते है कि मुक्त करायी गयी नव वधु राणा हुर्रा की पत्नी बनी उससे 2 पुत्र सलखा व सैगला हुये इन दोनों पुत्रों में से सलखा ने सिसौली पर शासन किया और बलियान खाप बसायी और सैगला ने मेरठ जनपद के चौरासी खाप सैगलान बसायी। जानकारी के अनुसार आज 4 चौरासी खाप हैं। कैराना क्षेत्र में कलसयान नाम से रामपुर मनिहारान में खूबडों की चौरासी तथा सिसौली क्षेत्र में बालियान खाप तथा मेरठ में सैगलान खाप के नाम से विख्यात है। यह शहर पंजीठ से राणा हुर्रा की ही वंशावली है कुल मिलाकर शहर पंजीठ जो आज तक पिछडे गाँव के रुप में विद्यमान है ने इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण इतिहास की कड़ी प्राचीन इतिहास में जोडी जिसका यहाँ उल्लेख करना आवश्यक था इस गांव में वर्तमान समय में सैनी समाज के लोगों सहित मुस्लिम गूजर रहते हैं।
कैराना पर मुगल बादशाहों की नजरे इनायत रही है यही कारण है कि उन्होंने यहां पर अनेक महत्वपूर्ण निर्माण कराये जिनके अवशेष आज भी जीर्ण अवस्था में खण्डहर बने मुगलकाल की गवाही दे रहे हैं। कैराना के पूर्व में कांधला, पश्चिम में पानीपत, उत्तर में झिंझाना व शामली तथा दक्षिण में प्राचीन शहर पंजीठ व तीतरवाडा स्थित है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि पांडवों ने जो पाँच गाँव दुर्याेधन से माँगे थे वह गाँव पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपत, वरुपत ;बरनावा, यानि पत नाम से जाने जाते हैं। महाभारत काल में कैराना से होकर ही यमुना नदी बहती थी और यहाँ पर राजा कर्ण का राज्य था जिन्होने अपने समय में कई महत्वपूर्ण किले बनवाये और इसके चारो ओर पांडवों का रहन सहन व आवागमन था। कहा जाता है कि दानवीर कर्ण यमुना नदी के किनारे प्रातःकाल सूर्य देवता की पूजा किया करते थे। इसी स्थान पर राजा इन्द्र को राजा कर्ण ने अपने कवच कुण्डल दान में दे दिये थे। तब से ही राजा कर्ण दानवीर के नाम से विख्यात हुए।
महाभारत युद्ध स्थल होने के कारण तथा इसके कैराना के समीप होने के कारण पाण्डव व कौरवों ने कुरुक्षेत्र के आसपास चारों ओर युद्ध शिविर लगाये थे इन शिविरों में श्याम के नाम से जहाँ श्री कृष्ण रहते थे शामली कस्बा है तथा कैराना में महाबली कर्ण, नकुड़ में नकुल, तथा थानाभवन में भीम आदि के शिविर थे इसी प्रकार के अक्षर से नाम प्रारम्भ होने वाले कस्बों में करनाल, कैराना, कुरुक्षेत्र, कांधला आदि में कुरुवंश के युवराज दुर्याेधन ने अंगदेश बनाकर कर्ण को सौंपा था और राजा कर्ण ने यमुना किनारे इस स्थान को केन्द्र बिन्दु मानकर महत्वपूर्ण निर्माण कराये लेकिन बाद में मुगल कालीन समय में यह महाभारत कालीन स्मृतियां लुप्त कर दी गईं। बाद में सम्राट जहांगीर दिल्ली से दो बार कैराना आये और उन्होंने यहाँ पर दरबारेआम किया। लाल पत्थरों से निर्मित यहाँ पर कई दरवाजे व इमारतें आज भी इस काल की याद दिला रही हैं। सम्राट जहाँगीर व औरंगजेब ने जब पानीपत की लडाई लड़ी थी तब उन्होंने कैराना को ही अपने सैनिकों की छावनी बनाई थी उनके कई मकबरे नुमा भवन आज भी इस्लामिया स्कूल के पास जहाँ पर वर्तमान समय में पुलिस चौकी इमाम गैट हैए मौजूद है। इस क्षेत्र को आज भी छावनी के नाम से पुकारते हैं। औरंगजेब द्वारा बनाई गयी मस्जिद जो करीब 400 वर्ष पुरानी हैए यहाँ पर मौहल्ला दरबार में मौजूद है। पिछले दिनों जब इस मस्जिद की दक्षिण की ओर की दीवार तोड कर उसमें दुकान निकाली जा रही थी तो इस मस्जिद के नीचे एक तहखाना व सुरंग मिली थी जैसे ही इस रहस्य की चर्चा फैली शहरवासी देखने के लिए उमड पडे। उस हिस्से में दीवार करके प्रशासन ने बंद करा दिया था। इस बारे में कुछ लोगों का कहना था कि उक्त सुरंगनुमा तहखाने से उस समय की कोई दुलर्भ या पुरानी कीमती वस्तु मिली थी यह मामला आज भी रहस्यपूर्ण बना हुआ है। इस बारे में इतिहासकारों का यह भी कहना है कि यह सुरंग व तहखाना राजा कर्ण द्वारा यमुना नदी से पानी लाने के लिये यहाँ बनाई थी। सन 1527 ईण् में शामली परगना जिसमें कैराना भी शामिल था सम्राट जहांगीर ने अपने खास विश्वसनीय नवाब मुकर्रब खाँ को भेंट स्वरूप दिया था। इस परगने की सीमा करनाल तक थी मुकर्रब खाँ ने कैराना को अपना लिया और विकसित किया था उन्होने कैराना में पानीपत.खटीमा मार्ग के पास एक सुन्दर तालाबए नवाब किलाए नवाब दरवाजा एवं सुरंगे आदि बनवाई थी जिनके अवशेष आज भी मौजूद हैं। तालाब के पास कई पुरानी खण्डहर नुमा इमारतेंए दरवाजे व सिदरियों में मंदिर आकार के खण्डहर और बैगमपुरा मौहल्ले में एक बडी पुरानी सरायए बैगम महलए बारहदरी तथा सराय वाली मस्जिद जो बेगम महरूनिशा ने बनवाई थी तथा कई विशाल दीवारें अब भी खण्डहर बनी प्राचीन संस्कृति की याद दिला रही है। बेगमपुरा मौहल्ले में हकीम मुकर्रब खाँ की बेगमें रहती थी और मौहल्ला दरबार व आसपास उनका दरबार.ए.आम लगता था। यहाँ पर नवाब के किलों में चार कसौटी के खम्ब थे जो वर्तमान में पानीपत शहर में सुप्रसिद्ध हजरत मौला कलन्दरशाह के मजार में लगे हुये हैं।
कैराना में सम्राट जहाँगीर के लिये नवाब हकीम मुकर्रब खाँ ने एक तख्ते ताऊस ;सिंहासनद्ध भी बनवाया था जिसकी कीमत उस समय विदेशी सरकार ने लंदन में 72 करोड रूपये लगायी थी जिसको औरंगजेब के समय नादिरशाह लूट कर ईरान ले गया था जो आज भी वहां पर मौजूद है। जहाँगीर बादशाह ने किसी कार्य से खुश होकर कैराना व क्षेत्र में अपने विश्वसनीय नवाब हकीम मुकर्रब खाँ के द्वारा अनेक विकास कार्य नवाब मुकर्रब खाँ ने पानीपत रोड के पास करीब 55 बीघा भूमि में तालाब व किला बनवाया जिसकी चौडाई लगभग 250 वर्ग गज है इस तालाब की एक ओर दीवार नहीं है जबकि तीन ओर पक्की दिवारें है जिनमें सिद्धियां बनी हुई हैं इस तालाब के बीच एक सुन्दर व सफेद पत्थरों से निर्मित करीब 15 फुट ऊंचा व 60 फुट लम्बा चौडा टापू ;चबूतराद्ध है बताया जाता है कि नवाब साहब अपनी बेगमों के साथ किश्ती द्वारा तालाब की सैर किया करते थे तथा बीच में स्थित चबूतरे पर आराम फरमाया करते थे इस तालाब के पास बने किले के नीचे तीन सुरंगे हैं। जिनका एक दरवाजा यमुना नदी की ओर तथा एक दिल्ली की और तीसरा पानीपत की ओर खुलता है तथा यहीं से एक सुरंग नवाब गेट से होते हुए दरबार वाली शाही मस्जिद में खुलती थी। बताते हैं कि उक्त रास्ते से नवाब साहब नमाज के लिए जाते थे। दूसरी नगर में एक कुएं में आकर खुलती है जबकि तीसरी सुरंग दिल्ली में इसलिये खुलती थी क्योंकि वहीं सम्राट जहाँगीर रहता था। इसी के पास बू अलीशाह कलन्दर शाह भी थे। आज भी वहाँ पर उनकी स्वर्यं की एवं उनके परिवारजनों की कब्रें मौजूद हैं। कैराना में स्थित ऐतिहासिक नवाब तालाब की कहानी के सम्बंध में बुजुर्ग लोग बताते हैं कि नवाब मुकर्रब खों ने एक नौलखा बाग भी लगवाया था जिसमें 360 कुएं खोदे गये थे जिनसे इस बाग की सिंचाई होती थी। इस नौलखा बाग में एक एक पेड फलदार लगवाये थे जिनमें आमए अमरूदए सेबए लीचीए कैहवा आदि थे। इस बाग में किले के आसपास एक हजार पिस्ता के पेड थे जबकि भारत में आज और उस समय कहीं भी पिस्ता पैदा नहीं होता था। आज वह पेड तो नहीं हैं बल्कि लगभग दो सौ कुओं के निशान आज भी बंद हालत में मौजूद हैं इस तालाब की तीन साईड प्राचीन समय की बनी हुई हैं आज भी टूटी हालत में स्थित है। कहा जाता है कि इस तालाब को उस समय के दानवों श्भूतों द्वारा एक ही रात में बना दिया गया था। इसमें लगे दानव उस समय रात को एक तरफ की दीवार अधूरी छोडकर भाग गये थे जब किसी महिला ने रात्रि को ही भोर होने से पहले चक्की चला दी थी। दानवीर कर्ण के नाम से विख्यात कैराना में राजा कर्ण सम्राट जहाँगीर और नवाब हकीम मुकर्रब खां का इतिहास सरकारी गजट में भी मिलता है। कैराना के एक इन्टर कालिज के शिक्षक श्री आशाराम शर्मा जिन्होंने यहां के इतिहास पर शोध किया है के अनुसार यहाँ पर शासन व प्रशासन ने प्राचीन काल की बनी स्मृतियों के सौन्दर्यकरण पर भी ध्यान नहीं दिया और हमेशा कैराना की उपेक्षा ही की। प्रशासन ने कभी भी इस कस्बे को पुरातत्व विभाग को नहीं सौंपा और न ही ऐतिहासिक इमारतों की सुरक्षा हेतु कोई कदम उठाया। स्वाधीनता आन्दोलन में शामली तहसील को क्रांतिकारियों द्वारा जला दिया गया था जिस कारण अंग्रेजों ने बाद में कैराना में तहसील बनवाकर इसको मुख्यालय का रूप दे दिया था।
कैराना। कस्बा हकीमों की नगरी के नाम से भी विख्यात रहा है इसके अलावा शास्त्रीय संगीत के नाम पर तथा फिल्मी दुनिया के अभिनय आदि में विशेष ख्याति प्राप्त की। कैराना ने वीणावादक, बांसुरी वादक, रुपद गायक तथा अनेक शास्त्रीय गायक देश को दिये हैं। यहाँ से कैराना घराना् जो अब किराना घराना के नाम से जाना जाता है की संगीत साधना मुगल काल से हुई थी। उस समय कैराना के रहने वाले उस्ताद शकूर अली खाँ द्वारा यह संगीत कला शुरू की गई थी। किराना घराना आज भारत में ही नहीं बल्कि देश विदेश में भी प्रसिद्ध है कुछ वर्ष पूर्व किराना घराने की यशस्वी कलाकार श्रीमती गंगुबाई हंगल का शास्त्रीय गायन नव भारत टाइम्स ग्रुप द्वारा स्वर्गीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की पुण्य तिथि पर अपने उत्सव में आयोजित किया था। 20वीं सदी से पहले कैराना घराने का संगीत देश विदेश में प्रसिद्ध रहा।

















































