श्रीरामलीला महोत्सव में हुआ ‘नारद मोह’ लीला का भव्य मंचन

श्रीरामलीला महोत्सव में हुआ ‘नारद मोह’ लीला का भव्य मंचन

Puneet Goel

 

 

कैराना। कस्बे के गौशाला भवन प्रांगण में चल रहे श्रीरामलीला महोत्सव में बुधवार की रात्रि भक्तिमय और शिक्षाप्रद प्रसंग का भव्य मंचन किया गया। मंच पर कलाकारों ने भगवान विष्णु के परम भक्त महर्षि नारद जी से संबंधित ‘नारद मोह लीला’ का ऐसा सजीव चित्रण प्रस्तुत किया कि दर्शक भाव-विभोर होकर बार-बार तालियों की गड़गड़ाहट से कलाकारों का उत्साहवर्धन करते रहे।

मंचन का शुभारंभ परंपरागत रूप से गणेश वंदना और मंगलाचरण के साथ हुआ। तत्पश्चात् कथा का आरंभ हुआ
इंद्र दरबार में हलचल मच गई। जब देवताओं ने देखा कि महर्षि नारद गहन समाधि और कठोर तपस्या में लीन हैं, तब इंद्रदेव को भय हुआ कि कहीं उनकी तपस्या से स्वर्गलोक की सत्ता डगमगा न जाए। अतः इंद्र का दरबार डोल उठा और उन्होंने इस संकट से निपटने हेतु उपाय सोचा।

इंद्रदेव ने तत्क्षण कामदेव तथा अप्सराओं को आज्ञा दी कि वे नारद जी की समाधि भंग कर दें। इंद्र का आदेश पाकर कामदेव अपने धनुष पर पुष्पबाण चढ़ाकर नारद जी के समीप पहुँचे। अप्सराओं ने नृत्य एवं सुर-लहरियों से वातावरण को मोहक बनाने का प्रयास किया और कामदेव ने अपनी समस्त शक्तियों का प्रयोग कर नारद जी के मन को विचलित करना चाहा।

किन्तु महर्षि नारद अपनी गहन साधना और प्रभुचिंतन में इतने तल्लीन थे कि कामदेव के समस्त प्रयत्न विफल सिद्ध हुए। उनकी तपस्या अडिग रही और मोह-माया का कोई प्रभाव उन पर नहीं पड़ा।

इसके बाद दिखाया गया कि किस प्रकार महर्षि नारद जी भगवान शंकर के पास जाकर भगवान विष्णु के मायाजाल की चर्चा करते हैं।
कथा के अनुसार नारद जी अपने अहंकारवश भगवान विष्णु की माया को तुच्छ समझ बैठते हैं और उसी घड़ी भगवान विष्णु उन्हें उनकी ही लीला के माध्यम से यह संदेश देते हैं कि यह संपूर्ण जगत उनकी अपार माया से संचालित है।

लीला में दिखाया गया कि महर्षि नारद विवाह के मोह में फंस जाते हैं। एक सुंदर राजकुमारी को देखकर वे उससे विवाह का संकल्प लेते हैं। वे स्वयं को वर के रूप में प्रस्तुत करने हेतु दर्पण में देखते हैं, लेकिन भगवान विष्णु की लीला से उनका स्वरूप वानर जैसा प्रतीत होता है। राजसभा में उपस्थित सभी लोग उनका उपहास उड़ाते हैं। तभी नारद जी को वास्तविकता का ज्ञान होता है कि भगवान की माया असीम और अगाध है, जिसका आभास मात्र भी साधारण जीव क्या, स्वयं ऋषि-मुनि तक नहीं कर पाते।

जब नारद जी को अपनी भूल का एहसास हुआ तो उन्होंने भगवान विष्णु की शरण लेकर उनसे क्षमा याचना की। मंचन के अंत में कलाकारों ने भक्ति एवं ज्ञान से ओत-प्रोत यह संदेश दिया कि मानव को कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि परमात्मा की माया और उनकी लीला अनंत और अकल्पनीय है।

इस अवसर पर रामलीला कमेटी के पदाधिकारियों ने बताया कि हर वर्ष की भांति इस बार भी रामलीला मंचन का उद्देश्य समाज को धार्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों से जोड़ना है। महोत्सव में नगर ही नहीं, बल्कि आसपास के कस्बों और गांवों से भी भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होकर कथा का आनंद ले रहे हैं।

मंचन देखने आए दर्शकों ने इस प्रसंग को अत्यंत मनोरंजक, भावनात्मक और शिक्षाप्रद बताया। समूचा वातावरण जय श्रीराम और नारायण-नारायण के उद्घोष से गूंजता रहा। महाराजा इंद्र का अभिनय रोहित नामदेव, कामदेव का अभिनय प्रवीण उर्फ़ काका, नारद जी का अभिनय सम्मोहित शर्मा, विष्णु भगवान का अभिनय सतीश प्रजापति, माता लक्ष्मी का अभिनय् शिवम गोयल, नारद जी के गानों का अभिनय आशु गर्ग व सोनू कश्यप ने किया।