सुप्रीम कोर्ट ने एनसीपीसीआर की याचिका ठुकराई, हाईकोर्ट का फैसला बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने एनसीपीसीआर की याचिका ठुकराई, हाईकोर्ट का फैसला बरकरार
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की उस विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें 2022 के पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत 15 वर्ष से अधिक उम्र की या यौवन प्राप्त कर चुकी मुस्लिम लड़की अपनी इच्छा से विवाह करने में सक्षम है, भले ही पॉक्सो अधिनियम के प्रावधान लागू हों।
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ—जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन—ने स्पष्ट किया कि एनसीपीसीआर इस मामले में पक्षकार नहीं है और उसे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने का अधिकार भी नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने संबंधित दंपति की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए सही आदेश पारित किया था।
अदालत की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर दिए गए आदेश पर ‘कानून के प्रश्न’ पर बहस नहीं हो सकती। अदालत ने एनसीपीसीआर से सवाल किया कि जब लड़की अपने पति के साथ रह रही है और उनके एक बच्चा भी है, तब इस मामले को चुनौती देने की आवश्यकता क्यों है।
सरकार का पक्ष
एनसीपीसीआर की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भट्टी ने दलील दी कि अदालत संरक्षण जारी रख सकती है, लेकिन इस कानूनी प्रश्न को खुला छोड़ना चाहिए कि क्या पर्सनल लॉ के आधार पर नाबालिग का विवाह वैध माना जा सकता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया।
इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत 16 वर्ष की मुस्लिम लड़की का विवाह मान्य होगा।

















































