कैराना का नवाब तालाब का इतिहास
- कैराना का नवाब तालाब का इतिहास

बताते है कि सम्राट जहाँगीर के युग में कैराना में एक वैद्य बडे सिद्ध पुरूष जिनकी सेवा में जिन्नात दैत्यद्ध भी रहते थे। जिनके चर्चित होने में एक लकडी का बहुत महत्व हैए वह लकडी आपको कैसे प्राप्त हुई इस बारे में कहा जाता है एक लकडहारा जंगल से काटी लकडियां लिये जा रहा था जिस पर वैद्य साहब की दृष्टि पडीए देखते हैं कि उसका सारा भीतरी शरीर दिखायी दे रहा हैए जिस से लकडहारा अनभिज्ञ था। वैद्य साहब ने सभी लकडियों का मूल्य चुकाकर हर लकडी को उसके सर पर रख कर देखा विशेष लकडी प्राप्त होने पर शेष लकडियां वापस कर दीं।
कुछ समय पश्चात सम्राट जहाँगीर की पत्नी के पेट में दर्द हुआ तो सभी वैद्यों के नाकाम होने पर कैराना के वैद्य से चिकित्सा कराने का सुझाव दिया गयाए कैराना के प्रसिठ्ठ वैद्य को बुलवाया गयाए वैद्य साहब ने रानी के सर पर लकडी रख कर देखाए फिर सम्राट से कहा कि रानी गर्भ से है व बच्चे ने उसकी अंतडी को अपनी मुटठी में भींच रखा हैए इसे छुडाने की युक्ति के लिए इतनी राख मंगायी जाय कि रानी उस पर कुछ दूरी तक टहल सके व आरम्भ से कुछ दूरी छोडकर गोखरू कांटे मिली राख बिछायी जाये जिससे रानी को सुचित न किया जाऐए ऐसा ही किया गया। जब रानी उस राख पर चलने लगीए अचानक जैसे ही रानी के पैर के नीचे गोखरू कान्टा आयाए रानी को झटका लगा जिससे बच्चे की पकड छूट गयी व रानी ठीक हो गयी। सम्राट बहुत प्रसन्न हुआ और कैराना को भेंट स्वरूप दे दिया। आगे कथन इस प्रकार है कि इन्हीं वैद्य साहब के सुपुत्रा नवाब मुकर्रब खाँ ने कैराना में अपने सिद्धि प्राप्त पिता से उनके सेवक दैत्यों से बागए कुएं और तालाब बनवाये। तालाब के बारे में कहा जाता है कि यह दैत्यों द्वारा एक ही रात्री में निर्मित है। एक ओर की दीवार शेष रहने सम्बंध में कहा जाता है कि किसी वृद्ध महिला के हाथ की आटा चक्की चलने की आवाज आने से कार्य अधूरा छोडकर चले गये कि भोर हो चुकी है। यह कथन मेरे अब्बाजी हाजी शमसुल इस्लाम मज़ाहिरी ने अपनी जीवनी में विस्तार से लिखी है। इस बारे में ऐतिहासिक पुस्तक श्तुज़्क.ए.जहाँगीरीश् जो कि स्वयं सम्राट जहाँगीर की लिखी हुई है में लिखा है. ष् शेख बहा का पुत्रा शेख हसन जो बाल्यावस्था से मेरी सेवा कर रहा है की सेवा से प्रसन्न होकर मैं ने श्मुकर्रब खाँश् की उपाधी दी.,सच भी यही है कैराना की जागीर उस परिवार को मिली थी जो पुश्तों से सम्राट की सेवा में था अर्थात यह जागीर नवाब के पिता को सम्राट अकबर ने दी थी। उपाधी मुकर्रब खाँ जहाँगीर ने जिस को कैराना वासियों ने बिगाड कर मुकर्रब अली खाँ कर दिया है।
कैराना तालाब में स्वच्छ जल यमुना नदी से एक ओर से आता व दूसरी ओर से जाता था इस बाग के चारों और बाग था जिसकी सैर के पश्चात प्रशंसा में जहाँगीर ने अपने रोजनामचे तज़क.ए.जहाँगीरी में यूँ लिखा है कि..मेवादार वृक्ष जो कि विलायत में होते हैं यहाँ तक की पिस्ता के भी मौजूद थे। जहाँगीर अपनी कैराना यात्रा बारे में विस्तार से लिखते हैं। 21 तारीख को कैराना आने की सआदतमन्दी का इत्तफाक हुआ। परगना मुकर्रब खाँ का है। इस की आब और हवा मौतदिल और कैराना की ज़मीन अहलियत रखने वाली है। मुकर्रब खाँ ने वहाँ बागात और इमारात बनाये हैं जब दो बार तारीफ बाग की गयी तो दिल को इस बाग की सैर करने की रगबत पैदा हुई। हफ्ते के रोज जब तारीख 22 हो गई मैं घर वालों के साथ इस बाग की सैर से खुश हो गया हूँ। यह बाग तकल्लुफात से खाली और बुलन्द मर्तबा व दिलनशीं है पक्की दीवार इसकी घेर में खींच दी गई और कियारियाँ को निकाला गया है। एक सौ चालीस बिगह जमीन है और बीच बाग एक हौज है लम्बाई दो सौ बीस गज़ है। दरमियान हौज़ के सुफ्फा.ए.माहताबी चॉदनी रात में घूमने फिरने के लिए चबूतरा है जो कि बाईस गज़ मुरब्बा है। और बाग में ऐसे फल लगे पेड भी हैं जो कि गर्मी में या सर्दी में मिलते हैं। बाग में मौजूद हैं। मेवादार दरख्त जो कि ईरान और ईराक में होते हैं यहाँ तक कि पिस्ता के पौधे भी सरसब्जी की शक्ल में और खुश कद और खुश बदन सरू ब्लचतमे के पेड इस किस्म के देखे कि अब तक कहीं भी ऐसे खूबी और लताफत वाले सरू नहीं देखे गये। मैंने हुकम दिया कि सरू के पेडों की गिनती की जाए। तीन सौ पेड थे। और हौज के आस पास मुनासिब इमारतों का पता भी चल रहा है।
लेखक
मौ0 उमर कैरानवी

















































