बकरीद पर पत्रकार गुलवेज़ आलम की भावुक अपील

बकरीद पर पत्रकार गुलवेज़ आलम की भावुक अपील

-कहा- “अल्लाह को दिखावा नहीं, सच्चा दिल चाहिए”

  1. कैराना। मुस्लिम समाज के प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखने वाले और स्वतंत्र पत्रकार गुलवेज़ आलम ने बकरा ईद के मौके पर एक ऐसा संदेश दिया है जो दिल को छू लेने वाला ही नहीं, बल्कि समाज को नई दिशा देने वाला भी है। गुलवेज़ आलम ने इंटरनेट मीडिया के माध्यम से मुस्लिम समुदाय से खास अपील करते हुए कहा कि “अल्लाह को दिखावे की नहीं, दिल से की गई इबादत पसंद है।” इसलिए समाज के हर व्यक्ति को चाहिए कि ईद की नमाज सार्वजनिक स्थलों या सड़कों पर नहीं बल्कि तयशुदा स्थानों—मस्जिदों या ईदगाहों में अदा करें।

उन्होंने दो टूक कहा कि “इबादत कोई तमाशा नहीं, जिसे चौराहे पर दिखाया जाए।” इस तीखे और सजीव अंदाज में उन्होंने समाज को एक गहरा संदेश देते हुए कहा कि इस्लाम सादगी, सफाई और दूसरों के अधिकारों की हिफाज़त का पैग़ाम देता है, और हम सभी की जिम्मेदारी बनती है कि अपने अमल से इस पैग़ाम को ज़मीन पर उतारें।

गुलवेज़ आलम ने यह भी कहा कि कुर्बानी इस्लाम की एक अहम रस्म है, लेकिन इसमें साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि जानवरों के अवशेष गलियों, नालियों, या सार्वजनिक स्थलों पर न फेंके जाएं, बल्कि उन्हें नियमानुसार ठिकाने लगाया जाए, जिससे किसी भी धर्म, जाति या समुदाय के लोगों को असुविधा न हो।

गौरतलब है कि गुलवेज़ आलम मरहूम वरिष्ठ पत्रकार मोहम्मद सलीम के सुपुत्र हैं, जिनका नाम क्षेत्र की पत्रकारिता में एक निष्ठावान और निष्पक्ष आवाज़ के तौर पर हमेशा याद किया जाता है। साथ ही, वे देश के ख्यातिप्राप्त पत्रकार मुशर्रफ सिद्दीकी के भतीजे हैं, जिनकी कलम से निकले शब्द सत्ता के गलियारों में भी गूंजते रहे हैं।

शासन-प्रशासन के लिए भी यह एक सराहनीय उदाहरण है कि जब समाज का जिम्मेदार वर्ग खुद आगे आकर अमन-चैन और सौहार्द की अपील करता है। गुलवेज़ आलम ने खास तौर पर यह भी कहा कि मुस्लिम समाज को चाहिए कि वह सरकारी गाइडलाइनों का पालन करे, जिससे कोई भी अप्रिय स्थिति पैदा न हो और हमारे त्योहार पर कोई उंगली न उठा सके।

“त्योहार तब ही खूबसूरत होते हैं जब उनका असर सिर्फ घरों तक सीमित न रहे, बल्कि मोहल्लों, बाजारों और दिलों में भी अमन और इज्जत की रोशनी फैले।”

इस अपील को समाज के हर कोने में पहुंचाया जाना जरूरी है ताकि मजहब के नाम पर होने वाले गैरज़रूरी विवादों को रोका जा सके और इस्लाम की असल तालीम—पाकीज़गी, तहज़ीब और मोहब्बत—को ज़िंदा रखा जा सके।

प्रशासन से सराहनीय अपेक्षा

इस संवेदनशील अपील के मद्देनजर जिला प्रशासन, पुलिस विभाग और स्थानीय निकायों से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वे समुदाय के सहयोग को प्रोत्साहित करें और सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखने के लिए हर संभव सहयोग करें।

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मुस्लिम समाज से उम्मीद:

बकरा ईद का त्यौहार आपसी भाईचारे और त्याग की भावना का प्रतीक है। गुलवेज़ आलम जैसे जागरूक पत्रकारों की यह अपील समाज के हर ज़िम्मेदार नागरिक के लिए आईना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मुस्लिम समाज इस संदेश को गंभीरता से लेकर एक नई मिसाल पेश करेगा।

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याद रखिए – अल्लाह दिलों को देखता है, रास्तों की भीड़ को नहीं।

 

रिपोर्ट इमरान अब्बास प्रधान, कैराना

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